जानते हैं आप,
रूठने की आदत नहीं अब मुझे
रोकर बात मनवाने की बात अब नहीं रहीं |
नखरे करना भूल गई हूं,
अब वक्त बेवक्त फरमाइशों की आदत भी चली गई।
नहीं करती इंतजार किसी तोहफे का बे सबब मुस्कुराना भी सीख लिया है मैंने।
कर लेती हूं बात अब हर किसी से
डरना घबराना छोड़ दिया है मैंने।
अच्छी बन तो रही हूं,क्या आपके खुदा के लिए, काफी है इतना या बाकी है और सताना मुझे।
उनसे कह दीजिए कि अब लौटा दें आपको अब,
कुछ मांगने की आदत भी उनसे,
छोड़ दी है मैंने।
Written by
Seema Dwivedi
Posted by
Shouray Paroha
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
हमें बताएं आपको यह कविता कैसी लगी।