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अतः, सच भी, अर्ध सत्य बोलता है

 


अतः, सच भी, अर्ध सत्य बोलता है 

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मंच मौन है,अतः, रच-रच के, नेपथ्य बोलता है,

सत्य गौण,अतः, सज-धज के, सौजन्य बोलता है ।

मजमा लगा हुआ है, हर जगह, मन्तव्य बोलता है,

चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है ।


1.हर कोई दे रहा है, सिर्फ, संविधान की दुहाई,

हर कोई लड़ रहा है, सिर्फ, अधिकार की लड़ाई ।

कर्तव्य गौण, बस खुल के, अकर्मण्य बोलता है,

चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है ।


2.व्यक्तित्व, खुद के भय से, व्यक्तव्य बोलता है,

अस्तित्व खुद से डर के, बस, वर्चस्व बोलता है ।

हुकूमत के दर पे भी, बस, हास्य-व्यंग्य बोलता है,

चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है ।


3.आजाद हर डगर है, कहीं कोई, बाध्य नही है,

विवाद हर जगह है, कहीं कोई, साध्य नहीं है ।

सबके साथ, सबके अंदर, बस, चाणक्य बोलता है,

चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है ।


4.आधा भरा है, शायद आधा, खाली गिलास है,

अधकचरा है, शायद ज्यादा, बाकी लिबास है ।

अधिनायक भी, अब सिर्फ, सच के सिवाय बोलता है,

चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है ।


5.अर्थव्यवस्था का कोई, अब, औचित्य नही है,

किसी भी आस्था में कोई, अब पूरा, तथ्य नही है।

मूक-बधिर भी, मुखर हो के, अब, मूर्धन्य बोलता है,

चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है ।


6.पत्रकारिता भी, राजनीति के, खेमे में बंट गई,

सहकारिता भी, मस्खरी और मेवे में ही सलट गई,

अखबार भी, अब, अचानक ,हो के,आश्चर्य बोलता है,

चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है ।


7.आचरण कहीं, किसी का, अब क्षम्य नही है,

उदाहण भी कोई, कहीं भी अब, प्रणम्य नही है ।

मति विमूढ़ भी, मद में, खुद को, मर्मज्ञ बोलता है,

चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है ।


8.लुभाती हैं दुनिया की, सिर्फ, चिकनी चुपड़ी बातें,

छुपाती हैं बिजलियाँ भी, सिर्फ, काली-काली रातें ।

सच बोलने से, अब सब का, सामंजस्य डोलता है,

चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है ।


9.हार-जीत के सभी, रीत और कायदे बदल रहे,

मनमीत बनाने में भी, सिर्फ, फायदे हैं फल रहे ।

ये इक्कीसवीं सदी का, मानो नया,पर्याय बोलता है,

चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है ।


10.विविधता में, अब, इस तरह, दिख रही है एकता,

विचित्रता ही बनती जा रही, है सबकी सभ्यता ।

शैतान ही, सबसे ज्यादा, बन के, सभ्य बोलता है,

चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है ।


11.शोहरतों से परिवेश, शायद, अग्रगण्य बन रहा,

इमारतों में ही देश का, शायद, भविष्य सज रहा ।

मूल चंद का वजूद, इसमे गुम हो के, नगण्य बोलता है ,

चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है ।


12.अभिमान हर जगह है, कहीं, तारतम्य नही है,

गतिमान हैं सभी,पर, किसी का कोई, गन्तव्य नही है ।

सेहत मे, हर शख्स अपना, सिर्फ सौंदर्य तौलता है,

चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है ।


13.धरती का तमाशा, रोज-रोज, सरेआम हो रहा,

आसमां आकस्मिक सा, रोज-रोज, पैगाम दे रहा ।

मौसम भी रोज नया-नया, अपना रहस्य खोलता है,

चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है ।


14.उदबोधन में, कहीं भी सीधा, संवाद नही है,

सम्बोधन, भी कहीं भी दिखता, निर्विवाद नही है ।

हर अनुमान,अनिश्चित सा,अटकल,आगत्य बोलता है,

चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है ।


15.मातृत्व में भी दिखता, अब वो, वात्सल्य नही है,

दायित्व में भी दिखता,कहीं कोई,तातपर्य नही है ।

सजदे में भी अब, सिर्फ सस्ता, साहित्य बोलता है,

चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है ।


16.लगी मे भी लँगड़ा सा, लावण्य बोलता है,

दिल्लगी में भी तगड़ा सा, वैमनस्य बोलता है ।

बन्दगी में भी, बढ़-चढ़ के, बस, वाणिज्य बोलता है,

चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है ।


17.पचता नही किसी को,अब,अपने ही घर का खाना,

करता है, हर कोई, खुद से ही, रूठने का, एक बहाना ।

हर रिश्ते में, सिर्फ औपचारिक, आतिथ्य बोलता है, 

चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है ।


18.तरक्की, तकनीक की, यूँ , गुलाम बन गई,

परस्ती ही, अब, हर कश्ती की, मुकाम बन गई । 

शिखर पर पहुंच कर भी, एक, शून्य बोलता है,

सीमा पर ही नही,अंदर भी,अब सिर्फ सैन्य बोलता है,

चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है ।


19.देवालय में मन्नत, अब, होती नही है पूरी,

न्यायालय की भी, अपनी, अब होती है मजबूरी ।

न्याय होने से पहले ही, बढ़ के, अन्याय बोलता है,

चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है ।


20.दर्शन भी प्रदर्शन का, यूँ, मोहताज हो रहा,

चिंतन-मनन भी अपना, वो, अल्फाज खो रहा ।

मातम मनाने में भी, अब सिर्फ, मूल्य बोलता है,

हर देवता के अंदर ही, अब एक दैत्य बोलता है,

चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है ।


मंच मौन है, अतः, रच-रच के, नेपथ्य बोलता है,

सच गौण, अतः, सज-धज के, सौजन्य बोलता है ।

मजमा लगा हुआ है, हर जगह, मन्तव्य बोलता है,

चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है ।

Written by

आशिक कुमार ओझा


8141161192

15, बंसी बंगलो, करमसद रोड, वल्लभ विद्यानगर, आनंद, गुजरात 388120

Posted by

Om Tripathi

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