जाते हैं पिता
बेटी का वर,
सुन उनकी
मांग को,
वापस आ
जाते हैं घर।
उनकी मांग
पूरी करने में,
रहते हैं असमर्थ,
सोचन लगते हैं,
जन्म दिया
बेटी को व्यर्थ।
पुनः जब
प्रस्ताव लेकर,
जातें हैं दूसरे के द्वार,
घर को भेज देती है,
उसे दहेज की मार।
देख बेटी,
इस हाल में बाप को,
कोषण लगती
अपने आपको
कोई तो मुक्त करो,
बेटी के इस श्राप को,
दहेज की
प्रताड़ना से,
ऐसे जो
बेटी को मारोगे,
माँ, बहन, पत्नी, बहू
ढूंढ कहां से लाओगे?
Written by
-Pooja Jha(Kavya)
Parmanandpur,Arariya
(BIHAR)
Posted by
-Om Tripathi
Its real
जवाब देंहटाएंVery very good
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