अब बस भी करो अपना कहर,
बहुत उगल चुके हो तुम जहर,
छुपने को बचा नही कोना,
अब बस भी करो कोरोना॥
कितनो का तुमने गोद छीना ?
कितनो का किया माँग सुना?
रूकने के नाम पर हो रहे दोगुना,
अब बस भी करो कोरोना॥
मानो तुमने जीना ही सिखा दिया,
अपने कहर से इतना जो डरा दिया
हो गया है मुश्किल अब जीना,
अब बस भी करो कोरोना॥
आखिर कौन सा-विष तूने अपने अंदर है पाल रखा,
जिसे बडे़- से- बडे़ वैज्ञानिक भी ना समझ सका,
तुम्हारे कारण अपनों को पड रहा है खोना
अब बस भी करो कोरोना॥
Written by
-Pooja jha(Kavya)
Parmanandpur, Arariya(BIHAR)
Posted by
-Om Tripathi
Great poem
जवाब देंहटाएंIt is the best poem in this time
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंVery very nice poem
जवाब देंहटाएंWah very nice
जवाब देंहटाएंSuperb ..
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