Hamari kavita सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अगस्त, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Faasle

_ फासले  यूँ फासले जो तेरे मेरे दरमियाँ आने लगे, हमें लगता है, तुम कहीं और दिल लगाने लगे। अपनी थकावट सुना कर अब जो तुम, हमें बहलाकर, हमें ही सुलाने लगे। हम समझ गए हैं — कि "जान", "जानू", "डार्लिंग" कहकर, तुम अब किसी और को बुलाने लगे।  ~ Drx Ashika sabri (Age: 22) Bsc ,D pharma Varanasi(U.P)

Pagal

_ पागल हो क्या तुम? क्यों कोई तुमको आँखों में बसा ले काजल हो क्या तुम? शहर की गलियों में गाँव वाली मोहब्बत ढूंढ रही हो, पागल हो क्या तुम? अब कहाँ कोई छत पर आकर तोहफ़े में दुपट्टा दिया करते हैं, अब तो व्हाट्सऐप चैट पर बिना कपड़ों के फोटो मंगा लिया करते हैं। बिना देखे मोहब्बत करने का दौर गुज़रे बरसों हुआ करते हैं, देखो सूरज ढलने को आया, चलो अपने-अपने घर चलते हैं। ~ Drx Ashika sabri (Age: 22) Bsc ,D pharma Varanasi(U.P)

Ghar se Nikli

- घर से निकली घर से निकली तब जा कर ये बात समझ आई मुझे, कि कहीं खा न जाए महफ़िल की तन्हाई मुझे, जो लगती थी अक्सर। अपनों की बातें रुसवाई मुझे, लड़खड़ाने पर क़दम मेरे सभाली उनकी ही परछाईं मुझे। पहले नादान थे जो, समझ न पाते थे रिश्तों को, आज जो अकेले हुए तो समझ आई उनकी गहराई मुझे। जो न आती मैं घर वापस तो मार देती लोगों की बेवफ़ाई मुझे | ~ Drx Ashika sabri (Age: 22) Bsc ,D pharma Varanasi(U.P)

Adhuri Mohhabat

_ अधूरी मोहब्बत ना मैं उसके तक़दीर में ना वो मेरी हाथों की लकीर में ये मोहब्बत इतना आसान नहीं होता,  साबरी कभी-कभी तो लोग पागल बनकर बंध जाते हैं लोहे की ज़ंजीर में। ~ Drx Ashika sabri (Age: 22) Bsc ,D pharma Varanasi(U.P)

Ummeede

_   उम्मीदें उम्मीदें इस जहाँ में बस ख़ुदा से रखना तुम साबरी इंसान कभी किसी के साथ वफ़ा नहीं करते। जो क़ैद कर ले किसी को अपनी यादों में, तो मरने तक उनको उस यादों से रिहा नहीं करते। रूह से इश्क़ करना ये बस ख़्वाबों-ख़यालों  फिल्मों में सुन रखा होगा सबने, हक़ीक़त में इस जहाँ में लोग बिना जिस्म के इश्क़ का सौदा नहीं करते। वादे करके भूल जाना तो इंसान की फ़ितरत है। यहाँ वादे ख़ुदा से भी करके लोग पूरा नहीं करते। ~ Drx Ashika sabri (Age: 22) Bsc ,D pharma Varanasi(U.P)

Hamari Pehli MulaKat

 _ हमारी पहली मुलाक़ात हमारी पहली मुलाक़ात हमें हमारी दूरियाँ बता रही थी। वो अपनी बीवी और बच्चों के साथ सामने से आ रहा था। उसे किसी और के साथ देखकर दिल मेरा जैसे बैठा जा रहा था। वो भी अपनी पलकों को बार-बार झुका रहा था, शायद अपने आँसू छिपा रहा था। बदलकर रुख अपना उसकी तरफ से, जो मैं आगे को निकली, तो कोई मुझे मेरे नाम से पुकार रहा था। पलटकर जो मैं देखी तो, पता चला — माँ-बाप और समाज से हारा हुआ एक लड़का, अपनी बेटी को अपनी माशूका के नाम से बुला रहा था ~ Drx Ashika sabri (Age: 22) Bsc ,D pharma Varanasi(U.P)