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दिसंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अतः, सच भी, अर्ध सत्य बोलता है

  अतः, सच भी, अर्ध सत्य बोलता है  ~~~~~~~~~~~~~~~~~ मंच मौन है,अतः, रच-रच के, नेपथ्य बोलता है, सत्य गौण,अतः, सज-धज के, सौजन्य बोलता है । मजमा लगा हुआ है, हर जगह, मन्तव्य बोलता है, चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है । 1.हर कोई दे रहा है, सिर्फ, संविधान की दुहाई, हर कोई लड़ रहा है, सिर्फ, अधिकार की लड़ाई । कर्तव्य गौण, बस खुल के, अकर्मण्य बोलता है, चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है । 2.व्यक्तित्व, खुद के भय से, व्यक्तव्य बोलता है, अस्तित्व खुद से डर के, बस, वर्चस्व बोलता है । हुकूमत के दर पे भी, बस, हास्य-व्यंग्य बोलता है, चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है । 3.आजाद हर डगर है, कहीं कोई, बाध्य नही है, विवाद हर जगह है, कहीं कोई, साध्य नहीं है । सबके साथ, सबके अंदर, बस, चाणक्य बोलता है, चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है । 4.आधा भरा है, शायद आधा, खाली गिलास है, अधकचरा है, शायद ज्यादा, बाकी लिबास है । अधिनायक भी, अब सिर्फ, सच के सिवाय बोलता है, चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है । 5.अर्थव्यवस्था का कोई, अब, औचित्य नही है, किसी भी...

मेरा यार समनज़ार

 मेरा यार समनज़ार       ---------------------------                        >> रामावतार दाधीच  संदल की वादी सा , तेरा चेहरा लगता है ।   नैनों में उतर जाऊँ, समंदर गहरा लगता है ।।  रहते हो , तुम दिल में   अहसास करा दूँ, पल में  दिल मजरुह सा डोल रहा तन्हा  मौहब्बत की महफ़िल में   तेरी काली जुल्फों में , नूतन सवेरा लगता है ।। नैनों में उतर,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  अंजन तेरी आँखों में , यादों की सलाखों में ,  कातिल अदा है, सब तुम पे फिदा   हो तुम एक ही लाखों में ।  तेरे कजरारे नैनों में , मुकद्दर मेरा लगता है ।। नैनों में उतर,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  तेरे लबों की गुलाबी सुरेखा  दिल को हमने लुटते देखा  घनघोर घटा सी छाई दिल पे हमारे , तेरे काजल की पतली रेखा ।  हया भरी है आँखों में तेरा रंग सुनहरा लगता है ।  नैनों में उतर ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, संदल की वादी सा तेरा चेहरा लगता ह...

वापस, लो रे सरकार

  कृषि बिल को फौरन,वापस, लो रे सरकार ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ वापस लो, वापस लो, वापस लो रे सरकार, कृषि बिल को फौरन,वापस, लो रे सरकार । ये बिल हमें हरगिज, नहीं,नही,नहीं है स्वीकार, वापस लो, इस बिल पर, पुनः करो रे विचार, कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार । 1.जाने कैसे, क्यों, कहाँ, किसका, दिमाग है फिरा, किया न गया किसी से, कोई, सलाह मशविरा । निभा रहा है, न जाने कौन, किसका किरदार, कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार । 2.राजनीति से हमारा, कोई, काम नही है, किसी की कुर्सी भी, हमारा, मुकाम नही है । हम मांग रहे हैँ, सिर्फ, हमारा कृषि अधिकार, कृषि बिल को फौरन वापस, लो रे सरकार । 3.हमसे खान-पान है, हमी से जिंदगी में जान है, फिर भी,कभी अभिमान ना किया, हम वो किसान हैं । देखो, हर हाल में हम, सबके लिए, रहते हैँ तैयार, कृषि बिल को फौरन,वापस, लो रे सरकार । 4.भूखे रह के भी, हमने,हमेशा,सबका पेट भरा है, बाढ़, सूखे में भी न हमारा,कभी भी, रेट बढ़ा है । हमसे ही संतुलित है, भारत देश का बाज़ार, कृषि बिल को फौरन, वापस, लो रे सरकार । 5.हम किसान हैँ, धरती से हम, अनाज हैं उगाते, एहसान मान, हमसे ही, तुम, राज-काज ह...

ज़िंदगी

  फ़लसफ़ा ज़िंदगी का ना कोई समझ पाया पर ये वो तराना है जो हर किसी ने गाया। दुख की परछाइयां है सुख के उजालों में हर कोई जाना चाहे बचपन के ज़माने में रेस के घोड़े हैं बाजिया लगाते है छोटी छोटी खुशियों पर शर्तें लगाते हैं गैस के गुब्बारे से उड़ते वो जाते हैं कब हवा निकल जाए भूल सब जाते हैं खाली हाथ आकर भी जेबों को वो भरते हैं। खाली हाथ जाना है शोहरत को तरसते हैं नेकी की कमाई का संदेश सब देते हैं खुद पर आए जो  मुंह फेर लेते हैं पिंजरे का जो तोता है इक दिन उड़ जाएगा।  दुनियां से हस्ती क्या नाम तलक मिट जाएगा Written by Anita Maishra Hariana, Hoshiyarpur Punjab Posted by Om Tripathi