अतः, सच भी, अर्ध सत्य बोलता है ~~~~~~~~~~~~~~~~~ मंच मौन है,अतः, रच-रच के, नेपथ्य बोलता है, सत्य गौण,अतः, सज-धज के, सौजन्य बोलता है । मजमा लगा हुआ है, हर जगह, मन्तव्य बोलता है, चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है । 1.हर कोई दे रहा है, सिर्फ, संविधान की दुहाई, हर कोई लड़ रहा है, सिर्फ, अधिकार की लड़ाई । कर्तव्य गौण, बस खुल के, अकर्मण्य बोलता है, चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है । 2.व्यक्तित्व, खुद के भय से, व्यक्तव्य बोलता है, अस्तित्व खुद से डर के, बस, वर्चस्व बोलता है । हुकूमत के दर पे भी, बस, हास्य-व्यंग्य बोलता है, चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है । 3.आजाद हर डगर है, कहीं कोई, बाध्य नही है, विवाद हर जगह है, कहीं कोई, साध्य नहीं है । सबके साथ, सबके अंदर, बस, चाणक्य बोलता है, चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है । 4.आधा भरा है, शायद आधा, खाली गिलास है, अधकचरा है, शायद ज्यादा, बाकी लिबास है । अधिनायक भी, अब सिर्फ, सच के सिवाय बोलता है, चश्मा चढ़ा हुआ है,अतः,सच भी,अर्ध सत्य बोलता है । 5.अर्थव्यवस्था का कोई, अब, औचित्य नही है, किसी भी...
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