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Me Rishto ka Darji hu

  'में रिश्तो का दर्जी हूँ  में रिश्तो का दर्जी हूँ  करता सबसे अर्जी हूँ  रिश्ते नातों के लिवास में कहीं छेद ना होने पाए ऐसा रफूं करो कि फिर से कोई भेद ना दिखने पाए नहीं सिली पोशाक अभी तक ना पतलून बनाई है मानवता में भेद कर सके कुर्ता कोट न टाई है आस्तीन को जोड़ सके ना  गिरेवान क्यों छांट दिया मेरे इस लिवास को तुमने क्यों दो हिस्सों में बाँट दिया  किसने ये अधिकार दिया था या लज्जा बची न थोड़ी थी तुमने कुछ बिन समझे ही रिश्तों की तुरपन तोड़ी थी पहले नाप लिया होता तो शायद ऐसा ना करते  दीन इलाही या मौला से कुछ तो शायद तुम डरते,  पाठ पढ़ा ना मानवता का ना गिरेवान में झांक सके  ऐसा करने से पहले नहीं तुम्हारे हाथ रूके कुछ काट छाँट क्या करना सीखे भला बुरा ना छाँट सके गैरत ऐसी करनी पर जो मानवता को बाँट सके में ठहरा रिश्तो का दर्जी  कफन छोड़ सब सिलता हूँ  रिश्ते हों या लिवास  में सब पर इस्त्री करता हूँ  सिलवट कोई शेष रहे ना  सम्बन्धों के धागों पर आखिर उस मालिक की मर्जी में जीता अपने भागों पर नहीं मरेगी मानवता तेरे इन दुश्कर्मो...